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तांडव रिव्यू: पॉलिटिक्स में रुचि रखते हैं तो जरूर देखें सैफ अली खान की तांडव...


पिछले काफी समय से सोशल मीडिया पर सैफ अली खान की वेब सीरीज तांडव का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था और अब वह इंतजार खत्म हो गया है और सैफ अली खान की तांडव वेब सीरीज ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो चुकी है| आपको बता दें कि सैफ अली खान की तांडव वेब सीरीज अमेजॉन प्राइम पर रिलीज हो चुकी है, जैसा कि इस वेब सीरीज के ट्रेलर में ही देखा जा सकता है कि इस पूरी वेब सीरीज की कहानी राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती हुई दिखाई देगी|

एक कहावत बहुत पहले से प्रसिद्ध चली आ रही है कि सब्र का फल मीठा होता है, लेकिन इस वेब सीरीज के मामले में ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ क्योंकि इस वेब सीरीज का फ्रेंस पिछले काफी समय से इंतजार कर रहे थे और यह वेब सीरीज उनके इंतजार का फल इतना अच्छा नहीं दे पा रही है| यदि आप राजनीति में रुचि रखते है और आप राजनीति से जुड़ी हुई फिल्में देखते रहते हैं तो आपको यह वेब सीरीज जरूर देखनी चाहिए| इस पूरी कहानी में दो कहानियां एक साथ चलती हुई नजर आती हैं, जिसमें पहले पीएम की कुर्सी के लिए दिल्ली में चलती है तो दूसरी ओर यूनिवर्सिटी कैंपस के अंदर भेदभाव, जातिवाद इत्यादि मामलों को लेकर चलती हुई दिखाई देती है|


यदि आप तिग्मांशु धूलिया के फ्रेंन है तो यह वेब सीरीज आपको पहले ही एपिसोड में निराशा दे सकती है, क्योंकि इसमें पहले ही एपिसोड में तिग्मांशु धूलिया के कैरेक्टर को खत्म कर दिया गया है तो आइए चलते हैं इस पूरी वेब सीरीज की उन दो कहानियों की तरफ जिन पर यह पूरी वेब सीरीज टिकी हुई है|


लगातार दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे देवकीनंदन यानी तिग्मांशु धूलिया अपनी पार्टी को तीसरी बार सत्ता में लाने की कोशिशों में लगे हुए हैं, लेकिन अचानक से उनकी मौत हो जाती है और जैसा कि हमारी अधिकतर फिल्मों में होता है कि प्रधानमंत्री के दावेदार की मौत के बाद उसके बेटे को प्रधानमंत्री का दावेदार माना जाता है| इस वेब सीरीज में भी कुछ इसी तरह से उनके बेटे को प्रधानमंत्री का दावेदार मान लिया जाता है, लेकिन इसके विपरीत उनके बेटे समर ने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से इनकार कर दिया और इसके बाद अगला प्रधानमंत्री कौन रहेगा इसी बात को लेकर पार्टी के अंदर ही उथल-पुथल मच गई और ऐसी स्थिति में जब पार्टी के अंदर ही मतभेद हो तो किसकी जीत होती है, यही सवाल इस पूरी वेब सीरीज को आगे बढ़ाता नजर आता है|


जेएनयू से प्रभावित है इस वेब सीरीज की दूसरी यूनिवर्सिटी की कहानी भले ही इस वेब सीरीज में यूनिवर्सिटी का नाम विवेकानंद नेशनल यूनिवर्सिटी रखा गया हो, लेकिन ऐसा लगता है जैसे इस पूरी कहानी को जेएनयू यूनिवर्सिटी को ध्यान में रखकर लिखा गया है, जहां कॉलेज का एक छात्र नेता(शिवा शेखर) किसान आंदोलन के साथ खड़ा होकर रातों-रात सोशल मीडिया पर स्टार बन जाता है और उसके भाषण को प्रधानमंत्री कार्यालय तक भी देखा जाता है| कहानी के अनुसार शिवा राजनीति में नहीं उतरना चाहता लेकिन वह दलदल में फंस चुका होता है, यह दोनों कहानियां आपस में एक ना होकर भी अंत में एक होते हुए नजर आते हैं और यही है तांडव की पूरी कहानी|


इस पूरी कहानी को देखने के बाद ऐसा लगता है जैसे इसमें इतना दम नहीं है जितना कि इस कहानी के ट्रेलर को इतना दमदार दिखाया गया है, ऐसा लगता है कि इस पूरी कहानी की जिम्मेदारी इसकी स्टार कास्ट पर डाली गई है और स्टार कास्ट ने अपनी जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाई है| इस वेब सीरीज की कहानी में इतना दम नहीं है जितना ट्रेलर में दिखाया या बताया गया है| स्टार कास्ट के एक्टिंग देख कर आप फिर भी यहां रुके रह सकते हैं सैफ अली खान, कुमुद मिश्रा, डिंपल कपाड़िया, सुनील ग्रोवर और मोहम्मद जीशान अय्यूब अपने किरदारों में दमदार दिखे हैं| शुरुआत से अंत तक सभी लय में हैं | तिग्मांशु धूलिया चाहे कम वक्त के लिए स्क्रीन पर हो लेकिन प्रभावी हैं। जीशान अय्यूब एक युवा छात्र नेता के किरदार में उन्होंने एक बार फिर खुद को साबित किया है|


सोशल मीडिया पर आप तांडव का रिव्यू भी देख सकते हैं लोगों ने काफी एंटरटेनिंग रिव्यूज दिए हैं कहानी कैसी है एंटरटेनिंग है या फिर बोरिंग है





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